छद्म था वो आवरण
जिसपर चढ़ा था स्वर्ण रंग
कीचड़ सा था उनका हृदय
मिथ्या रंगों का क्या करे
नयन हुए थे चकाचौंध
बढ़ चला उनको वो रौंद
गतिहीन थी उसकी ये चाल
धरती हुई थी रक्त लाल
सूना था आँचल सूखे थे आंसू
सब छिन गया किसको क्या बांटू
दुनिया भी चीखी ईश्वर भी रोया
किसने क्या पाया किसने क्या खोया
अब अति हुई और बहुत हुई
अब खुल चुकी है सारी कलई
घट भर चुका है पाप का
अमानवीयता की हर बात का
क्रूरता अपने चरम पर है
क्या बात सिर्फ धरम पर है?
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© Snehil Srivastava
क्रूरता अपने चरम पर है, क्या बात सिर्फ धरम पर है..
ReplyDeleteवाह....... इस एक line ने वो सब बोल दिया जो सदियों से चला आ रहा एक घिनौना सच है और जो मानव के अन्दर अमानव को उजागर और शर्मसार कर रहा है..
बहुत खूब लिखा है..बहुत ही उत्तम...आपको बहुत बहुत साधुवाद..