Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Wednesday, December 31, 2014

बेपरवाह 'मैं'!
The lonely play

मुझे 'मैं' पसंद नहीं
और मुझमें छिपा वो
दोनों में कोई सामंजस्य ही नहीं
एक कहता- रुक जाओ, दूसरा कहे- बस चलते रहो
अरे कोई इस शोर को भी तो देखो
न सको देख, तो कम से कम सुन तो लो
देखा? सुना?
या आँखें कर लीं बंद
अनसुना कर दिया
बड़ा रहस्यमयी है ये मैं
और ये शोर भी
साठ गाँठ लगती है मुझे तो कुछ इनकी
इंतज़ार है मुझे अब
इस मैं के सो जाने का
इस बेपरवाह
शोर के थम जाने का
फिर आएगी वो नींद
गहरी, मखमली सुनहरी

Picture credit: www.naturemoms.com
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© Snehil Srivastav

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