आँखों का गरम पानी क्यों रह रहकर तुम्हारे कोरों पर रुकता है?
फूल मुरझाकर टूटता है, बिखरता है पर सदा यूँ ही महकता है
क्यों तुम्हारे अंदर की आंधी उदासी से भरी होती है
आंधियाँ जब थमती हैं जिंदगी को नई दिशाएं मिलती है
एक उनींदी भरी आह मुझसे बोली
ये आँखों का पानी नहीं समंदर है मेरी आहत भावनाओं का
फूलों का महकना यदि सत्य है तो आखिर वो जीवित ही क्यों होता है
यदि आंधी ना होती उदासी में तो दुनिया सदा ही रोती रहती
जिंदगी जब थमती है तो दिशाएं भी बिखर जाया है करती
मेरे उत्तर को सुनकर आह मंद पड़ गयी
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© Snehil Srivastava
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