Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, December 29, 2014

...तो क्या हो?
What if, I...?

तारतम्य बिठाने को
यदि मैं बिखर भी जाऊँ तो क्या हो
रोते हुए को हँसाने को
यदि मैं कभी मुस्कुरा ना पाऊँ तो क्या हो

है सब्ज़ बाग़ ये ज़िन्दगी
मैं ये खुद ना समझ पाऊँ तो क्या हो
सारी बातें दिल से ही कहूँ
आँखों से कुछ भी ना समझा पाऊँ तो क्या हो


हुआ जब भी है कोई गुनाह
मैं बस आँखें मूँद के रह जाऊँ तो क्या हो
ना रहे कोई आवाज़ उठाने को
और मैं भी चुप ही रह जाऊँ तो क्या हो

आये शर्म मुझे तो भी मैं
बिलकुल भी ना शरमाऊँ तो क्या हो
जन्नत की बातें सारी उम्र करूँ
पल में दोज़ख ही पहुँच जाऊँ तो क्या हो

Picture credit: www.onewithnow.com
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© Snehil Srivastav

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