Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Sunday, April 26, 2015

और फिर
And again...

कुछ पुराना आज याद आ गया
कुछ रीता सा, कुछ बीता सा
ये बस कल ही तो था
जब बिखरे थे कुछ कोरे पन्ने से
जीवन संगीत से विरक्त हुई थी
वो मार्मिकता भरी शाम
और फिर कभी ना लौटी
जैसे लग गया हो पूर्ण विराम
पवित्रता को अपवित्र कर
अट्टहास लगा बैठी थी वो
जिसे कहते थे सब-
सदा खनकती रहो
अंत होना लिख छोड़ा था
उस अतुल शिल्पकार ने
हुआ वही जो होना था
मनुष्य चाहे कितना ही चीखे

-Snehil Srivastava

Picture credit: www.scientificamerican.com
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© Snehil Srivastava

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