Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, April 28, 2015

दो अलग
Different Two

किसी मुगालते में मत रहो जश्न मनाना और मातम मनाना दो अलग बातें हो सकती हैं पर दो अलग लोगों के लिए, जरुरी नहीं
किसी की जिंदगी, बनती है किसी का ग़म और बस यूँ ही बीत जाते हैं कई मौसम पत्ता गिरा, गिरा पेड़ भी एक दिन लेने को फिर एक नया जनम
लकड़ी जली दो रोटी बनी भूख से बिलखते चारों ने खायी पानी टपकता रहा टूटी झोपड़ी से सर्द रात की बदरी थी छायी
रात थी लंबी और बहुत गहरी माँ की लोरी कुछ ठहरी ठहरी सब सो गए सुबह होते होते शान्त हवा जैसे अंत को बह रही


Picture credit: www.rosemero.deviantart.com
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© Snehil Srivastava

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