जैसे ये सारा आकाश,
ये फैला हुआ पानी.
है धुप एक क्षण को
फिर आई है ये छांव
उन बादलों के मन से.
ये नमी, बस अभी रो देगी
या फिर कहेगी
रुको धूप! रहने दो मुझे
यूँ ही नम
पर शायद ये है
बस एक भरम
इस मन के कितने हाल हैं
जैसे ये सारी आस
और ये जीवन की कहानी
है मूक एक क्षण को
फिर आये हैं शब्द
न जाने किस गहरे वन से.
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