Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, September 30, 2014

बातों की बातें- Beautiful talks


किन बातों की बात करूँ मैं
वो तो सारी झूठी थीं
आँख खुली तो जाना मैंने
दुनिया खुद से रूठी थी
रूठा तो मैं भी था खुद से
दिन भी बीते बरस हुए
सागर संग मिलकर ये अंखियाँ
रोकर भी हंस लेती थीं

चार पलों का जीवन प्यारा
पल भर में ही मूँद गया
बाद हुआ क्या किसे पता है
जो जाने अमृत बूँद हुआ
रह जाती हैं बातों की यादें
बिन श्वासों के जान लिया
कुंहुंक उठी है हृदय धरा अब
बातों का महत्त पहचान लिया

Picture credit: www.hdhut.blogspot.com

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© Snehil Srivastava

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