चलो कुछ बातें करते हैं
कुछ खट्टी कुछ मीठी बातें
कुछ तुम्हारी कुछ मेरी बातें
हाँ जिससे मिट जायें सारी काली रातें
ये जो तुम्हारा हर एक शब्द है
मुझे इतनी ख़ुशी क्यों देता है
जैस मेरे लिए ही बुना गया है
हर एक शब्द
मैं अंजान तो नहीं
तुम ही हो शायद
जो कहती तो हो सब कुछ
पर खुद ही भुला देती हो
एक एक शब्द
फिर से कुछ कहने को
मुझे नई खुशियाँ देने को
हर बार होता है ऐसा
कोई हर बार आता है
फिर ये काला सा बादल
क्यों छा जाता है
तुम बता दो मुझे
सब कुछ जता दो मुझे
एक ठहराव हो
तो बस बात हो कुछ
सारी खुशियाँ झोली में समा जायें
सचमुच
तुम्हारी इन हवा के झोकें जैसी
बातों का पिटारा
कितना ही निराला है
लगता है जैसे
कुछ बहुत सुकून देने वाला है
अब रुक जाऊं क्या साथ तुम्हारे
या फिर....
चलो कुछ बातें करते हैं
कुछ तुम्हारी कुछ मेरी बातें
बारिश में भीगी मिट्टी सी
सोंधी सोंधी बातें
चलो ना...
कुछ बातें करते हैं...
कुछ बातें करते हैं...
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© Snehil Srivastava
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