यूँ आगोश में लेने को
वो प्यार समझ क्यों बैठे
सांसों के यूँ रुकने को
सांसों के यूँ रुकने को
बेकार समझ ही बैठे
जब भी उनका दीदार हुआ तो
जब भी उनका दीदार हुआ तो
खुद को पूरा पाया है
मौत हुई तो मुस्काकर मुझको
मौत हुई तो मुस्काकर मुझको
दरिया के पार समझ ही बैठे
औकात नहीं फिर भी वो मुझको
संसार समझ ही बैठे
रहमत थी ऊपर वाले की
रहमत थी ऊपर वाले की
वो दिन मेरे बस चार समझ ही बैठे
हँसकर बातें जब करते मुझसे
हँसकर बातें जब करते मुझसे
बेज़ा गुमान हो जाता था
ज़िक्र किया जब गम का मैंने
मेरी हार समझ ही बैठे
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© Snehil Srivastava
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ReplyDeleteसुंदर ।
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