Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, September 15, 2014

नासमझ- The Innocent liar


यूँ आगोश में लेने को
वो प्यार समझ क्यों बैठे
सांसों के यूँ रुकने को
बेकार समझ ही बैठे
जब भी उनका दीदार हुआ तो
खुद को पूरा पाया है
मौत हुई तो मुस्काकर मुझको
दरिया के पार समझ ही बैठे

औकात नहीं फिर भी वो मुझको
संसार समझ ही बैठे
रहमत थी ऊपर वाले की
वो दिन मेरे बस चार समझ ही बैठे
हँसकर बातें जब करते मुझसे
बेज़ा गुमान हो जाता था
ज़िक्र किया जब गम का मैंने
मेरी हार समझ ही बैठे

Photo credit: fineartamerica.com

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© Snehil Srivastava

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