जो तुम कहो...बस वही
और कुछ भी नही..!
हँसता था मै तब तब
जब इश्वर ने छीन लिया था मुझसे सब
फिर एक नन्ही सी परी..आई
और फिर आँखों में रौशनी सी छाई
लगा जैसे सब कुछ ठीक हो जायेगा
मन का हर सपना पूरा हो जायेगा
फिर मैंने उसे कहा तुम मेरी DIDU हो
उसने पुछा, क्या तुम मेरे भाई नहीं हो..?
मै बोला , हाँ हूँ मै तुम्हारा भाई
अब नही रह पाउँगा,इतनी ख़ुशी थी पायी
क्यों चले गये हो DIDU तुम मुझसे दूर
क्या तुम हो इतने ही मजबूर
बस तुम खुश रहो, हमेशा है सोचा
ना कहूँ तुमको, कुछ भी, हो तुम छोटा सा बच्चा
मै शायद हूँ इतना ही पागल
जो तुम्हे हर वक़्त करता हूँ, शब्दों तले बोझिल
नही है मेरा ये प्यार बोझ DIDU
तुम सच में हो मेरी, और सिर्फ मेरी DIDU
अब क्या करूँ कि तुम वापस आ जाओ
इतना, कि कभी दूर ही ना जा पाओ
पर शायद ये एक बंधन होगा
और एक झूठा सा सच रहेगा
समझ नही पा रहा अब और क्या लिखूं
या शब्दों को यूँ अधूरा ही रहने दूँ.....??
नही है मेरा ये प्यार बोझ DIDU
तुम सच में हो मेरी, और सिर्फ मेरी...DIDU !!