Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Sunday, November 6, 2011

"पैरों में पैंजनी पहने..."

पैरों में पैंजनी पहने,
जब वो छम्म छम्म कर चलती थी
कभी माँ की गोद में कभी पिता की
सारी दुनिया की सैर करने निकलती थी

यूँ ही एक दिन, उसने सोचा बड़ी हो जाऊं
पर दिल तो था अभी उतना ही कोमल
सबने सोचा बस, जल है ये किसी नदी का
पर जाने क्यों है इतना शीतल और निर्मल

किसी ने कहा इसे, ये मेरा है 'पानी'
किसी ने कहा कि बस मेरी है ये 'कहानी'
पर इसे मिलना था गहरे समंदर से
सब कुछ भूल, इसने किसी से कुछ कहा नहीं

धीरे धीरे, नदी ये जा रही है किसी ओर
जहाँ सोचा था इसने स्वयं का अंतिम छोर
पर ऐ नदी, तुम तो शांत हो 'उसकी' तरह
'जो' पैरो में पैजनी पहने फिरती थी, यहाँ वहाँ!!!




Dedicated to one of my friend...

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