Path to humanity

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We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, November 21, 2011

"याद..."



"याद एक शब्द है याद है एक एहसास,
आज है बहुत दूर कल था कितना पास.
यादों  को याद करने से आँखों में आंसू और होंठो पे हँसी है
ज़िन्दगी तब तो रुकी थी पर आज क्यों रुकी है ?
आंसू से यादों को भूलने का मन करता है
हँसी से दिल उन्हें फिर याद करता है
अब ना हँसना है ना रोना है
ना यांदें बनाना है ना उन्हें खोना है
पर इसके लिए कुछ यांदें होनी चाहिए
होंठों पे आंसू और आँखों में हँसी होनी चाहिए
बांते वही पहुँचीं हैं जहाँ से शुरू हुई थीं
अब आँखें नम हैं तब क्यूँ धुली थीं ?
सब कहते हैं 'स्नेहिल' सोचता बहुत है रोता बहुत है,
पर वो जब भी हँसता है खोता बहुत है
इस सोच में संतुष्टि और रोने में ख़ुशी है
पर ये यांदें इतना दर्द क्यूँ देती हैं ?"

2 comments:

  1. पर वो जब भी हँसता है खोता बहुत है...
    इस बात को लेकर मुझे भी कुछ लिखने का दिल हो गया है...

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  2. Shukriya..padhi maine apke blog par...shukriya phir se...

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