विराम है ये कुछ क्षणों का
अंत की दिशा में
अधिकता विचारों की, हर पल
ले जा रही घनघोर निशा में
जिसके बाद, है विश्वास-
होगा एक नया सवेरा
सब कुछ तो होगा
पर नहीं रहेगा अस्तित्व मेरा
यही शाश्वत सत्य है
जीवन की वितृष्णा का
हर एक ख़ुशी को
कभी न कभी तो मिटना था
परन्तु, विराम ये क्षण-प्रतिक्षण
और भी गहरा हो चला है
इस तरह रोने से अच्छा
तो मिटना ही भला है.
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