रहे होंगे ये कभी
खूबसूरत, नरम
महक से भरे हुए
पर आज यूँ क्यूँ हैं
निष्प्राण, कुरूप
बिलकुल सूखे हुए
उस रात जन्मते हुए
एक ठंडी हवा और
एक चुप्प का
हो रहा था साक्षात्कार
और आज यूँ मरे हुए
सारा शोर,
इस उमस से मिलकर
हो रहा है तार तार
क्या वो सही था..?
या अब ये गलत है..?
इश्वर उत्तर दो...
इन सूखे पत्तों को
फिर से जिंदा कर दो.
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ReplyDeletebohot bohot dhanwad, pratikriya ke liye....koshish jaari hai...kuch behtar likhte rehne ki.....
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