Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, April 7, 2012

इश्वर उत्तर दो...


रहे होंगे ये कभी
खूबसूरत, नरम
महक से भरे हुए
पर आज यूँ क्यूँ हैं
निष्प्राण, कुरूप
बिलकुल सूखे हुए
उस रात जन्मते हुए
एक ठंडी हवा और
एक चुप्प का
हो रहा था साक्षात्कार
और आज यूँ मरे हुए
सारा शोर,
इस उमस से मिलकर
हो रहा है तार तार
क्या वो सही था..?
या अब ये गलत है..?
इश्वर उत्तर दो...
इन सूखे पत्तों को
फिर से जिंदा कर दो.

2 comments:

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  2. bohot bohot dhanwad, pratikriya ke liye....koshish jaari hai...kuch behtar likhte rehne ki.....

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