Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Wednesday, May 23, 2012

बस यूँ ही...


आज,
मैं कितने दिनों बाद हँसा हूँ
अब तक उन परछाईयों में था
बेवजह, निराशा से घिरा,
डरा सहमा हुआ
बस यूँ ही.
आँखें बंद थी मेरी
उस तमस तक  पहुचनें में
नहीं रह गयी थी
कोई देरी
लग रहा था, हो जायेगा
सब कुछ ख़त्म
रह जाऊंगा मैं
बस बेदम

तब तुमने
ना जाने कहाँ से आकर
मुझमें जीवन का संचार किया
अपने कोमल हाथों से
मेरे कुरूप ह्रदय को तार तार किया
क्यूँ नहीं समझ पाया
इस कोमलता को
क्यूँ नहीं भुला पाया
अपनी विफलता को
तुम्हारी सुन्दरता में भी
अपनी कुरूपता तलाशता रहा
तुम्हें आघात देकर
खुद मुस्कुराता रहा
अब, एक ख़ुशी
मन में दबी हुई है
मेरा जीवन कहीं और है
पर सुखी है.

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