बचपन की दोपहर शरारत भरी होती है. खाने के बाद जब घर के सदस्य आराम कर रहे होते हैं तो बच्चे सबसे आंखें बचाकर सारे अधूरे और नए काम कर लेना चाहते हैं.
ऐसे ही बच्चे थे दिव्य और विश्व. सारा दिन धमा-चौकड़ी मचाते रहते थे. घर के बड़ों की एक भी बात नहीं सुनते थे. उनका कोमल मन कभी-कभी कठोर काम करने को मचल उठता था. जब तक माता-पिता को पता चलता, कुछ न कुछ बड़ा नुकसान हो जाता था.
गर्मी के दिन थे. सभी जीवों को एक छांव की तलाश होती है. एक दिन दिव्य ने देखा की बरामदे की अरगनी पर एक चिड़िया बैठी हुई है.
"विश्व, विश्व!! कहाँ हो भाई, यहाँ तो आओ. देखो यहाँ क्या है."
विश्व अपने सारे काम छोड़कर दौड़ता हुआ भाई के पास पंहुचा.
"हाँ भाई, क्या हुआ, क्या देख लिया तुमने ऐसा?
वो देखो, कबूतर वो भी सफ़ेद!! देखे हैं तुमने कभी?" (उसने अरगनी की और इशारा करते हुए छोटे भाई से कहा).
"सफ़ेद कबूतर? कहाँ, मुझे नहीं दिख रहे?"
"यहाँ आओ. इस टेबल पर चढ़कर देखो."
भाई!! ये कितना प्यारा है, बिलकुल सफ़ेद. पाउडर लगाता है क्या?"
और दोनों खिलखिलाकर हँस पड़े.
दोपहर बीती, शाम हुई, रात आ गयी.
"विश्व, सो गए क्या छोटे भाई?"
"नहीं"
"तो उठ ना, चल उसे देखकर आते हैं."
दोनों चुपके से बरामदे में पहुँचे, और टेबल पर खड़े होकर धुंधली सी रौशनी में उसे देखने लगे. वह वहीं चुपचाप बैठा हुआ था, जैसे किसी काम में मगन हो. फिर दोनों भाई आकर सो गए. ३-४ दिन बीत गए, दोनों इस बात को भूल गए.
दिव्य और विश्व, दोनों बच्चे माता-पिता के दुलारे थे. जो मांगते, सामने पाते. कभी किसी बात की ना नहीं सुनी दोनों ने. माता-पिता उनकी ख़ुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे. गलती करते तो थे, पर माता-पिता हमेशा प्यार से समझा देते थे कि ये गलत है, नहीं करना चाहिए.
उस दोपहर भी कुछ ऐसा ही हुआ. दोनों भाइयों का कोमल मन कुछ नया करना चाहता था.
दोनों बरामदे तक पहुचे, टेबल खिसकाई और अरगनी तक हाथ पहुँचाने की कोशिश करने लगे. दिव्य बड़ा था, वो आसानी से पहुँच गया, विश्व नीचे उतरकर देखने लगा, भाई क्या कर रहा है.
दिव्य ने देखा की हाथ लगाने पर भी कबूतर उड़ा नहीं, वही बैठा रहा. उसकी हिम्मत बढ़ गयी और फिर वह सफ़ेद कबूतर दिव्य के पंजों में था. उसने अपने छोटे भाई को दिखाने के लिए जैसे ही कबूतर को नीचे लाने की कोशिश की एक अंडा ज़मीन पर गिरा और टूट गया.
कबूतर सिर्फ इसलिए नहीं उड़ा था कि वो अपने बच्चे की रक्षा करना चाहता था, खुद की परवाह किये बगैर.
विश्व अचानक हुई इस घटना को देखकर रोने लगा, दिव्य कि आंखें भी नम थीं. कबूतर हाथों से छुटकर सामने रखी अलमारी पर जा बैठा.
अब सिर्फ दोनों कि आंखें भरी हुई थी, ज़मीन पर टूटा हुआ अंडा पड़ा था और सफ़ेद कबूतर शांत बैठा टूटे अंडे को देख रहा था.
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