बात है उस काली रात की
चहुँओर सन्नाटे का शोर
चुभ रहा था कानों में
ना कोई यहाँ था ना कोई वहाँ
सन्नाटा चीर देने को
मन था टीस रहा
हो जाऊं सफल
उसने खुद से कहा
चाहे अंत ही क्यूँ ना हो जाये
ज़िन्दगी की चाहत में
कमसकम मौत ही पास आ जाये
पर हुआ कुछ भी नहीं
जीना ही सजा थी
उस काली रात में
रौशनी, जाने कहाँ थी
हैं कुछ सांसे बाकी अभी
जिन्हें 'उसको' वापिस करूँ
था खुद में विश्वास
अब तो 'उस' सागर से मिलूँ
सन्नाटा, शांत हो चुका
सांसें शायद ख़त्म हो चुकीं
सांसें शायद ख़त्म हो चुकीं
जो मिलना था उसे
ना तब मिला
ना अब मिलीं
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