Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, October 22, 2012

भविष्य का गर्भ Beautiful Future



नहीं जानता था मैं तुम्हें
पहचानता था,
अभी भी संशय है मुझे
संशय है
या है विश्वास?
नहीं होता
कोई इतना अलग
जो बन जाए कुछ खास
एकाएक
बदलाव देखा, मैंने तुझमें
विश्वास तो था
कि ये तुम ही हो
किन्तु धूमिल होने में इसे
एक क्षण भी ना लगा
समझाया मैंने
मन को अपने
कि हो ना हो,
ये तुममें छिपा 'तुम' है
जो सत्य असत्य के भंवर में
फंसा हुआ, ढूंढ रहा है
स्वयं में 'स्वयं' का प्रतिरूप 
विकलांत, अशांत
चला जा रहा है
असीम की ओर
अनवरत अशब्द
उद्वेलित है खुद में
परन्तु है निश्चिन्त
और देख रहा है सुन्दर
भविष्य का गर्भ!

8 comments:

  1. गहन..... एक उत्कृष्ट रचना

    ReplyDelete
  2. विकलांत ,अशांत चला जा रहा है ,

    असीम की ओर -


    अनवरत ,अशब्द ,उद्वेलित है खुद में ,

    परन्तु है निश्चिन्त -

    देख रहा है -

    सुन्दर भविष्य का गर्भ .

    बरसों बाद इतनी कसाव दार प्रगाढ़ अनुभूत रचना पढ़ी है .लिखा आपने है ,भोगा हमने भी है ,हम सभी ने ये यथार्थ .

    ReplyDelete
  3. @Veerendra: Thank you sir for your words..

    ReplyDelete