Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, June 2, 2009

सपना कैसा...?


पता नहीं क्यूँ?मै नहीं जानता वो कौन था ?
घर में घुसते ही उसने माँ से, भाई से, किसी एक और से पूछा- कैसा दिख रहा हूँ मै ?
फिर वो मेरी ओर बढ़ा, पास आया, अपने प्रश्न को दोहराया. 
मैंने आँखे उठाईं, देखा. उसने धारीदार सूट पहेन रखा था, स्लेटी रंग का. 
सफ़ेद शर्ट  की बाहें कोट की बाहों से बाहर निकल आई थीं.
मुझे लगा वो मेरा भाई है जबकि घर में सबसे बड़ा मै हूँ.
वो बहुत सुन्दर दीख रहा था.
जाने कैसे मेरे मुह से निकला-" भैया आप वो नहीं हो जो बनने की कोशिश कर रहे हो."
ऐसा कहते हुए घुटन सी होती रही मुझे और मेरी आंखे भर आयीं.
     ऐसा होता है या नहीं, पता नहीं! सपनों में कोई अपना?
उसके लिए अकारण या शायद किसी कारण से ही आँखों में आंसू आना!
मेरी नींद टूट गई. मै रो रहा था, पता नहीं क्यूँ...?

1 comment:

  1. Sapne me chalte-2 aaina dekh liya kya??............sapne me dekh lia ki chah kuch rahe the aur ho gaya kuch aur...........shayad???

    ReplyDelete