Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Sunday, February 28, 2010

दो सच्ची कहानियां...

एक डोली चली, एक अर्थी चली।
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
चार तेरे खड़े, चार मेरे खड़े,
फूल तुझ पे पड़े, फूल मुझ पे पड़े, 
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
तू विदा हो रही, मैं जुदा हो रही,

एक डोली चली, एक अर्थी चली।
मांग तेरी भरी, मांग मेरी भरी,
चूड़ी तेरी हरी, चूड़ी मेरी हरी,
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
तू हँसा के चली, मैं रुला के चली,

एक डोली चली, एक अर्थी चली,
तुझे पाके पति, तेरा खुश हो गया,
मुझे खो  के पति मेरा रो रहा,
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
तू बसा के चली मै उजाड़ के चली,

एक डोली चली, एक अर्थी चली।
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
तू बसा के चली मै उजाड़ के चली,

द्वारा -सूरज सिंह

ऑटो रिक्शा में लड़की


मैं आम तौर पर बाइक से सफ़र करता हू, लेकिन कभी अगर ऑटो में जाना होता है तो तरह तरह के किस्से देखने को मिल जाते है। इसी में एक है ऑटो रिक्शा में लड़की के महत्त्व का किस्सा। मैं नॉएडा से गाज़ियाबाद अपने घर ऑटो से जा रहा था, शाम का वक़्त था भीड़ भी ज्यादा थी। हर किसी को घर जाने कि जल्दी थी। कैसे भी हो घर पहुँचो। ऐसे में मैंने देखा कि हमारे ऑटो फुल हो गया। लेकिन उसमे लड़की नहीं थी। तभी अचानक न जाने एक खूबसूरत लड़की न जाने कहाँ से आ गयी। और ऑटो वाले से गाज़ियाबाद जाने कि बात कि ऑटो वाले ने तभी बगैर कुछ सोचे समझे ऑटो से एक सवारी को फ़ौरन उतरने कि बात कह दी। लड़का देखने में सज्जन था, शायद तभी आराम से बगैर कुछ कहे ऑटो से उतर गया। और उस जगह लड़की बैठ गयी। लड़की जब ग़ाज़ियाबाद में उतर गयी। तब मैंने ऑटो वाले से पूछा यार तुमने पहल ऑटो में लड़के को उतार कर लड़की को जगहे क्यों दी। जबकि दोनों बराबर पैसे देते। इस पर ऑटो वाले का जवाब सुनकर मैं हैरान हो गया। उसका जवाब था कि भाई साहब आपको नहीं पता लड़की को ऑटो में बैठाने से सवारी ज्यादा मिल जाती है। इसीलिए मैंने उस आदमी को उतार दिया। लड़की के ऑटो में होने से अन्य सवारियों का भी मन लगा रहता है। और सवारी पैसे देने में चिक चिक भी नहीं करती। और अगर ऐसा करने में मुझे ज्यादा पैसे मिलते है तो मैं ऐसा क्यों न करू। आप खुद ही बताये......
तब मैं ऑटो में लड़की के महत्व को समझा

सूरज सिंह।

अलविदा...

बहुत दिनो से मैंने
अपना फोन को स्विच आफ नही किया
इस डर से कंही उसी वक्त तुम मुझे फोन करके
यह बताना चाह रही हो कि
मै अब उतना ही आउटडेटड हूं
तुम्हारे जीवन मे
जितना कि
तुम्हारे कम्पयूटर का कभी न डिलीट होने वाला
एंटी वायरस
हर एसएमएस पर चौकना अभी तक जारी है
इस उम्मीद पे कि तुम मेरी घटिया शायरी और
फारवर्ड किए गये संदेशो पर आदतन
वाह-वाह के दो शब्द भेज रही होगी
दवा के माफिक
बहुत दिनो से मुझे एक आदत और
हो गयी है मै बिना बात ही लोगो से बातचीत मे
तुम्हारा जिक्र ले आता हूं
चाहे बात वफा की हो या बेवफाई की
सुनो ! मैने अभी-अभी सोचा है कि मैं
अपना सिम बदल लूं
ताकि जब कभी हम मिले तो
तुमसे औपचारिक रुप से
यह सुन सकूं कि
बिना बताए नम्बर क्यों बदल लिया
तुम्हे बिना बताए किए जाने वाले
कामों की एक लम्बी लिस्ट है
मेरे पास
और तुम्हारे पास इतना भी वक्त नही
कि मुझसे बोल के जा सको
अलविदा....

डॉ.अजीत
http://www.shesh-fir.blogspot.com/

होली मे जलना होता है...??

यह चिड़िया गाते-गाते
चुप हो जाती है और
मौन में अपनी दुनिया बसाती है

क्या सच सुनाने के लिए भी दुनिया को सुनना होता है

यह चिड़िया उड़ते-उड़ते
खड़ी हो जाती है और
मुझे गोल-गोल घुमाती है

क्या दुनिया नापने के लिए अपने अंदर चलना होता है

यह चिड़िया चुगते-चुगते
मन के सारे दुख चुग जाती है और
पेड़ से अक्सर यह बुदबुदाती है

क्या शैतान परिंदों को भी महसूस अकेलापन होता है

हर बादल बरसने के लिए पैदा नहीं होता
हर बारिश फगुआ सा नहीं भिगोती

होली खेलने के लिए क्या जरूरी होली में जलना होता है

घोंसला लेकर उड़ने वाली
यह चिड़िया मुझसे पूछती है

क्या प्रेम करने के लिए प्रेम में बार-बार जलना होता है
pawan nishant
http://yameradarrlautega.blogspot.com

Saturday, February 20, 2010

"जरुर आना..."

बीत गया बचपन सारा
इन किताबों से मेरा मन हारा.
मैं रूठी...
बचपन रूठा
रूठा मेरा मन...
प्यारे बचपन
तुम वापस तो आओगे नहीं
पर समय से समय लेकर
मुझे अलविदा कहने जरुर आना
जरुर आना...
जरुर आना...
-Anonymous