Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Sunday, February 28, 2010

दो सच्ची कहानियां...

एक डोली चली, एक अर्थी चली।
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
चार तेरे खड़े, चार मेरे खड़े,
फूल तुझ पे पड़े, फूल मुझ पे पड़े, 
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
तू विदा हो रही, मैं जुदा हो रही,

एक डोली चली, एक अर्थी चली।
मांग तेरी भरी, मांग मेरी भरी,
चूड़ी तेरी हरी, चूड़ी मेरी हरी,
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
तू हँसा के चली, मैं रुला के चली,

एक डोली चली, एक अर्थी चली,
तुझे पाके पति, तेरा खुश हो गया,
मुझे खो  के पति मेरा रो रहा,
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
तू बसा के चली मै उजाड़ के चली,

एक डोली चली, एक अर्थी चली।
फर्क इतना है, सुनले ओ प्यारी सखी,
तू बसा के चली मै उजाड़ के चली,

द्वारा -सूरज सिंह

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