कोई है स्वयंभू और कोई आश्रित
निराश्रित भी कई हैं यहाँ
परन्तु इस पल में सब हैं शांत!!
कोई बताएगा मुझे क्या वजह है
कोई है यहाँ और कोई वहां
बिना किसी छोर के भी, कई हैं यहाँ
और इन सबके बीच मन है विकलांत
कोई तो कहे- क्यूँ ये सजा है?
चारों ओर अँधेरा, कहीं है एक दिया
खुद को जलाये भी, कई बैठे हैं यहाँ
स्वयं से पूछूँ? क्या है इसका अंत...
रेलगाड़ी, क्या यही परंपरा है?
कभी तो गति और कभी गतिहीन
साथ कभी जीवन का भी, सुना था यहाँ
खुद से पूछो, उदाहरण है ज्वलंत!!
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