जब फिर कभी धुंधली सी शाम होगी
और तुम होकर भी साथ ना होगी
चाहे कितने भी नम हों मेरे नयन
तुम्हारे बिना ज़िन्दगी अधूरी ही रहेगी
जब फिर कभी वो रात आएगी
थककर बैठ जाएगी, पर तुम्हें ना पाएगी
बोझिल होकर देखेगी नवीन स्वप्न
तुम्हारे बिना 'वो रात', फिर ना उठेगी
जब फिर कभी वो स्पर्श होगा
घने अँधेरे में तुम्हें महसूस करेगा
ना पाकर तुम्हें वो 'स्वप्न' सजल
आँखें बंद किये नमित कोरों से सजेगा
जब फिर कभी 'वही राह' मिलेगी
और चुभती हुई मुझे थाह मिलेगी
तुम ना हो वहाँ, यही करूँगा जतन
बस तुम्हारी कमी सारी उम्र खलेगी|
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