Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, December 31, 2012

तन्हां कहीं... Lost somewhere


एक बार फिर से
तुम साथ देने आ गयी
मन के छिपे कोरों से
याद तेरी आ गयी
झुठलाता हूँ मैं हर दम तुमको
रह रह कर हंस भी लेता हूँ
मेरे सपनों की दुनिया में
न जाने तू क्यूँ छा गयी
उन दरख्तों की खुशबु में
गुमसुम सा यूँ ही बैठा था
कहने को यूँ तो सब कुछ था
ना जाने तू क्यूँ शरमा गयी
हर अन्धियाले के बाद की दुनिया
यूँ काली होगी, ना सोचा था
मेरे दिल की हर धड़कन में अब
रहती है तू तन्हां कहीं...

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