Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Sunday, January 25, 2015

वो अंतिम कविता
One, last poem!


यदि मैं लिख भी दूँ वो अंतिम कविता
तो क्या पता
सुबह की नई दस्तक हो जाये
फूलों की बगिया फिर से महक जाये

रात आये चांदनी लिए
और टिमटिमाते तारों की रौशनी से
सारा आकाश दीवाली मनाये
यदि मैं लिख भी दूँ वो अंतिम कविता

सन्नाटे का शोर सुखन देने वाला हो
आँखें बंद हों तो सुकून मिलने वाला हो
यही एहसास होठों पर सदा मुस्कराहट लाये
यदि मैं लिख भी दूँ वो अंतिम कविता

निस्तार जीवन में विस्तार झलके
क्षितिज तक पहुचें अनवरत चलके
इसी तरह जीवन पूरा हो जाये
यदि मैं लिख भी दूँ वो अंतिम कविता
तो क्या पता...?

Picture credit: www.teachingauthors.com
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© Snehil Srivastav

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