इस तरह या उस तरह
न जाने फिर किस तरह?
तारा टूट गया,
हर अपना रूठ गया।
मनाया मैंने,
उस टूटे तारे को
सुबकते-बिखरते,
उस प्यारे को
पर वो
सपना सा, तारा बनकर टूट गया।
क्या सचमुच वो एक तारा था?
एकलौता जीवन जो हारा था,
अपनी मध्यम रौशनी को भूले
क्या ऐसा अस्तित्व वो सारा था।
पर वो तारा था,
रूठ गया, टूट गया।
सारे अपने मुझमें मिलकर
मुझसा बनना क्यों चाहें हैं?
क्या मैं भी खुद से रूठा हूँ
फिर वो तारे मुझको क्यों मनाये हैं?
पहला प्रश्न, अंतिम उत्तर-
इस तरह या उस तरह
न जाने फिर किस तरह!
न जाने फिर किस तरह?
तारा टूट गया,
हर अपना रूठ गया।
मनाया मैंने,
उस टूटे तारे को
सुबकते-बिखरते,
उस प्यारे को
पर वो
सपना सा, तारा बनकर टूट गया।
क्या सचमुच वो एक तारा था?
एकलौता जीवन जो हारा था,
अपनी मध्यम रौशनी को भूले
क्या ऐसा अस्तित्व वो सारा था।
पर वो तारा था,
रूठ गया, टूट गया।
सारे अपने मुझमें मिलकर
मुझसा बनना क्यों चाहें हैं?
क्या मैं भी खुद से रूठा हूँ
फिर वो तारे मुझको क्यों मनाये हैं?
पहला प्रश्न, अंतिम उत्तर-
इस तरह या उस तरह
न जाने फिर किस तरह!
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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