आज मुझे खुदा मिला,
रंजोग़म में बैठा - गुमसुम सा खुदा
उसकी आँखों का पानी
उसके कांपते हाथ
उसका उतरा चेहरा
उसकी थरथराती आवाज़,
जाने थी किस वजह?
पर आज मुझे खुदा मिला।
मेरे सवालों पर,
उसने गहरी ख़ामोशी इख्तियार कर ली।
मेरे कुरेदने पर बस-
उसकी आँखों का पानी,
गालों के रास्ते ढुलककर
सर्द होने लगा।
और आज मुझे खुदा मिला।
उसका यूँ ग़मगीन होना
उसके खुदा होने पर
कई सवाल खड़े करता है।
कि क्या वो वाकई खुदा है?
क्या वो इंसानियत से इतर हुआ है?
या फिर उसे 'कुछ तो' एहसास हुआ है।
क्या? वो अपने खुदा से क्यों न पूछ ले?
शायद वही यह कह सके-
"आज मुझे खुदा मिला।"
रंजोग़म में बैठा - गुमसुम सा खुदा
उसकी आँखों का पानी
उसके कांपते हाथ
उसका उतरा चेहरा
उसकी थरथराती आवाज़,
जाने थी किस वजह?
पर आज मुझे खुदा मिला।
मेरे सवालों पर,
उसने गहरी ख़ामोशी इख्तियार कर ली।
मेरे कुरेदने पर बस-
उसकी आँखों का पानी,
गालों के रास्ते ढुलककर
सर्द होने लगा।
और आज मुझे खुदा मिला।
उसका यूँ ग़मगीन होना
उसके खुदा होने पर
कई सवाल खड़े करता है।
कि क्या वो वाकई खुदा है?
क्या वो इंसानियत से इतर हुआ है?
या फिर उसे 'कुछ तो' एहसास हुआ है।
क्या? वो अपने खुदा से क्यों न पूछ ले?
शायद वही यह कह सके-
"आज मुझे खुदा मिला।"
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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