Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, February 20, 2017

'तुम्हारे दो लफ्ज़'
That you say...


तुम्हारे दो लफ्ज़...
दो लफ्ज़ ही काफी हैं,
तुम्हे सुनने को, तुमसे कहने को
बड़ी बड़ी बातों में भला क्या रखा है?
सुकून मिल जाता है हर ग़म की परछाई में
तुम्हारे दो लफ़्ज़ों में दुआ सा असर दिखता है।
कांसा मेरा टूट गया, मोहब्बत के बोझ में आकर
तुम्हारे दो लफ़्ज़ों से मेरा अक्स जुड़ा लगता है।
मैंने नहीं देखा 'उसे' कहीं, कभी इस जहां में
तुम्हारे दो लफ़्ज़ों में ही मुझे मेरा खुदा दिखा करता है।
दो लफ्ज़ ही काफी हैं, मुझे मेरे इत्तेफ़ाक़ से मिलाने को
तुम हो तो ये लफ्ज़ हैं, मुझसे इत्तेफ़ाक़ कहा करता है।


-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava

1 comment:

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