फिर लौटे हैं वो लम्हें
यादों की शामों के साथ
फिर एक बार चाहूँ मैं हरदम
छिपना तेरे दिल के पास
छू लो मेरे मन को तुम फिर से
कहनी है तुमसे वो बात
कह न सका तुमसे जो अब तक
अंधियारे सी वो काली रात
महक तुम्हारी मुझमें है अब
कसक तुम्हारी है अज्ञात
ना जाने क्यूँ चाहूँ मैं इतना
हर पल बस तेरा ही साथ
आँखें बंद हैं तो फिर क्यूँ
पकड़ा है तुमने ये हाथ
ना जाना चाहूँ तुमसे अब दूर
सुनलो मेरी बस ये बात
खूबसूरती से लिखे एहसास
ReplyDeleteThanks you for your words..
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