Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Friday, August 30, 2013

वो जो शायर था- Lost rhythm



वो जो शायर था चुप-सा रहता था
बहकी-बहकी-सी बातें करता था
आँखें कानों पे रख के सुनता था 
गूँगी खामोशियों की आवाज़ें!

जमा करता था चाँद के साए
और गीली- सी नूर की बूँदें
रूखे-रूखे- से रात के पत्ते
ओक में भर के खरखराता था

वक़्त के इस घनेरे जंगल में
कच्चे-पक्के से लम्हे चुनता था
हाँ वही, वो अजीब- सा शायर
रात को उठ के कोहनियों के बल
चाँद की ठोड़ी चूमा करता था

चाँद से गिर के मर गया है वो
लोग कहते हैं ख़ुदकुशी की है|


- Gulzaar

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