Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Wednesday, October 8, 2014

ओ मन के प्रहरी O' little hope


ओ मन के प्रहरी
तुम इतने अशांत क्यों हो
मुझसे कहो
मैं हूँ तुम्हारे सबसे करीब
हर झकझोड़ देने वाले स्वप्न में
तुम्हीं ने दिया है मेरा साथ सदा
तुम्हीं से तो कही है मैंने
अपने मन की सारी व्यथा
आज तुम दीप्तिमान ना भी हुए
तो मैं करूँगा तुम्हें प्रदीप्त
तुम्हारे भीतर की सौम्यता से
अपरिचित नहीं है मेरा अतीत
उस उजली किरण से पूछना कभी,
जो बस लौट आयी थी
तुम्हारे एक शब्द पर,
कि तुम्ही से सीखी है संवेदना मैंने
बादलों संग अठखेलियाँ कर
निकल जाते थे लेकर दूर मुझे
हमारी बातों का सार
तुम ही होते हो
पर मुझे तुम्हारा यूँ अशांत रहना
भावुक कर देता है
जिसने मुझे हर क्षण शक्ति दी
वो भला अब चुप क्यूँ रहता है
तुम्ही मेरी अंतिम सफलता
तुम्ही हो अडिग आधार
हृदय मेरा है बींध जाता
जब भी है होता तुम पर प्रहार
सच कहूँ तो
तुम्ही मेरी प्रेरणा रहे हो
ओ मन के प्रहरी
पर तुम इतने अशांत क्यों हो



Picture credit: www.simplyheavenlyfood.com

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© Snehil Srivastava

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