Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Wednesday, April 1, 2015

बेवजह
You are the Reason

मेरे लिखने की वजह
तुम नहीं हो शायद
अगर ये तुम होती
तो मैं तुम्हे कोरे पन्नों पर
उकेर देता
तुम्हारी मुस्कुराहट को
तुम्हारी बदमाशियों को
तुम्हारी आँखों से
कुछ कह देने की अदा
जिसमें बसी है
मेरी लिखने की एक वजह
हंसना भूला था मैं
तुम्हें अठखेलियां करता देख
ना जाने क्यों होंठ खुद-ब-खुद
मुस्कुरा उठते हैं
तुम्हारा यूँ अनजान बनना
जैसे कितना बचपन हो तुममें
तुम्हारी उँगलियों का नृत्य
तुम्हारा सानिध्य
और तुमसे सुन्दर
तुम्हारा व्यक्तित्व
पर मेरे लिखने की वजह
तुम तो नहीं हो शायद

मैंने नहीं था कभी सोचा
कि तुम्हें लिख सकता हूँ मैं
पर तुम्हारे प्रश्न
मुझे शर की भांति चुभ गए
सच ही तो है
तुम्हारे पुष्प केवल तुम्हारे हैं
मुझे कोई अधिकार नहीं
इनकी महक को आत्मसात करने की
पर ये अंत बड़ा अखरता है मुझे
शुरुआत का अंत
जैसे हो सागर का जल
नभ् के तारे
कुछ बिखरे सपने मेरे
कुछ सिमटे सपने तुम्हारे
बंद आँखें और बंद आँखों में तुम
बस जाये कोई ईश्वर
बजे फिर एक मधुर धुन
सब कुछ हो
चाहे हो बेवजह
पर मेरे लिखने की वजह
तुम तो नहीं हो शायद

Picture credit: www.funmag.org
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© Snehil Srivastav

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