Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Thursday, April 30, 2015

पोस्टमैन
Postman

पोस्टमैन कहता था वो खुद को-
चिट्ठियां पहुँचाने वाला
यहां से वहां,
वहां से जाने कहाँ कहाँ
गांव की गोरी की चिठ्ठी
शहर में बाबू को
कि मैं ठीक हूँ, मुन्नी बीमार है
कब आओगे,
मुन्नी के बापू?
दोस्त बने
दो अनजानों की चिठ्ठी
अपने सुख दुःख को बांटते
बीतते दिनों में
पोस्टमैन बाबू की राह ताकते
माँ की चिठ्ठी,
जिसके जवाब के इंतज़ार में
उसकी आँखें पथरा सी गयी हैं
कि आज कुछ खबर लाएंगे
पोस्टमैन बाबू मेरे बेटे की
इन सैकड़ो चिट्ठियों में
कभी किसी का जन्म
कभी किसी की मृत्यु
हुआ करती है
गला भर आता है कई बार
ख़ुशी से छलकते आंसू भी
दिखें हैं कई दफ़ा
ढेरों चिट्ठियां, उनके बीच पोस्टमैन बाबू
कोई नहीं भेजता इन्हें
एक भी चिट्ठी
कोई नहीं लेता खबर
इनके सुखों की, इनके दुखों की
और ये खुद-
अनगिनत लोगों के चेहरों पर
संतुष्टि का भाव देखकर
सहज ही मुस्कुरा पड़ते हैं
पोस्टमैन ना हुए,
कोई और हो गए

                                                 -Snehil Srivastava

Picture credit: www.antimakhanna.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava

No comments:

Post a Comment