मुझे लगता है,
टूटना जरुरी है कुछ टूटा जोड़ने के लिए
हम सभी तो
कहीं ना कहीं से टूटते ही हैं संवरने के लिए
ये टूट फुट, कभी सच कभी कुछ झूठ
एक हैं। पूरक हैं एक दूसरे के लिए
स्वयं का अभिप्राय तो सरल है
किन्तु प्रयोजन किसी दूसरे में निहित होना
जरा कठिन एवं कष्टदायी विदित् होता है
इसपर विजय ही सत्य विजय समझी जानी चाहिए
धर्म अपनी मान्यताओं से शक्तिशाली नहीं
अपितु निष्काम भाव का जुड़ाव ही धर्म है
यदि राम सत्य मर्यादित हैं तो कृष्ण आधुनिक
यदि रामाक्षरों का पालन किया जाना चाहिए
तो कृष्ण अभिभाषण आत्मसात करने होंगे
सर्वस्व जीवन तिरोहित करना
सर्वस्व त्यज देना, स्वयं में मानवता की
पराकाष्ठा है। करुणा जोड़ने से मिलती है,
तदोपरान्त आत्मसंतुष्टि।
एक अपूर्णता का भविष्य, सम्पूर्णता है
जिसका भूत कहीं और की अपूर्णता
हाथ में वर्तमान, जो यदि टूट जाये तो
जुड़ भी जायेगा- किसी गहरी सांस के साथ
जिसमें आँख मिचोली खेलती दिख जायेगी
कोमल निश्छल हृदयी हंसी।
टूटना जरुरी है कुछ टूटा जोड़ने के लिए
हम सभी तो
कहीं ना कहीं से टूटते ही हैं संवरने के लिए
ये टूट फुट, कभी सच कभी कुछ झूठ
एक हैं। पूरक हैं एक दूसरे के लिए
स्वयं का अभिप्राय तो सरल है
किन्तु प्रयोजन किसी दूसरे में निहित होना
जरा कठिन एवं कष्टदायी विदित् होता है
इसपर विजय ही सत्य विजय समझी जानी चाहिए
धर्म अपनी मान्यताओं से शक्तिशाली नहीं
अपितु निष्काम भाव का जुड़ाव ही धर्म है
यदि राम सत्य मर्यादित हैं तो कृष्ण आधुनिक
यदि रामाक्षरों का पालन किया जाना चाहिए
तो कृष्ण अभिभाषण आत्मसात करने होंगे
सर्वस्व जीवन तिरोहित करना
सर्वस्व त्यज देना, स्वयं में मानवता की
पराकाष्ठा है। करुणा जोड़ने से मिलती है,
तदोपरान्त आत्मसंतुष्टि।
एक अपूर्णता का भविष्य, सम्पूर्णता है
जिसका भूत कहीं और की अपूर्णता
हाथ में वर्तमान, जो यदि टूट जाये तो
जुड़ भी जायेगा- किसी गहरी सांस के साथ
जिसमें आँख मिचोली खेलती दिख जायेगी
कोमल निश्छल हृदयी हंसी।
-Snehil Srivastava
Picture credit: www.facesofbuddha.com
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© Snehil Srivastava