Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, November 30, 2015

'रंगीन गुब्बारे'
Innocent Balloon

आज मैंने ख़ुशी लाल गुब्बारे में फूटती देखी
एक बचपन कितना सरल होता है
जिसे कुछ नहीं चाहिए
ना रुपये ना गाड़ी बंगले
ना ही कोई भौतिक सुख
इसकी सरलता सुख के एहसास में है
जिसका मोल ये संसार तो नहीं ही लगा सकता है
बाजार में माँ के साथ आया बच्चा
गुब्बारे वाले को देखते ही खुश हो उठता है
की उसे इन रंग बिरंगे गुब्बारों में से
ये वाला, नहीं नहीं वो वाला
या फिर सारे के सारे गुब्बारे चाहिए
लाल पीला हरा नीला
किर्र किर्र की झुंझला देने वाली आवाज़ वाला गुब्बारा
और माँ ख़ुशी ख़ुशी उस नटखट की ख़ुशी में
कुछ छोटे कुछ बड़े गुब्बारे ले देती है
दो चार क्षणों बाद ही, धड़ाम!
फूट गया लाल गुब्बारा
टूट गया कोमल हृदय
यही तो सबसे प्यारा गुब्बारा था
अँखियों से मोती जो टपकने से लगते हैं
माँ उन्हें पोछती है, बच्चे को पुचकारती है
कहती है,
अरे ये नीला वाला तो तुम्हारे कपड़ों के रंगों से
मेल खाता है, लाल वाला तो कुछ छोटा सा था
और वो हंसने लगता है
उसे लाल गुब्बारे वाली ख़ुशी
नीले गुब्बारे में जो मिल गयी
और यदि ये भी हुआ धड़ाम तो क्या
पीला हरा नारंगी, जाने कितने रंग हैं
आज मैंने ख़ुशी नीले गुब्बारे में जुड़ती देखी

-Snehil Srivastava
Picture credit: www.wallpaperfinder.com
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© Snehil Srivastava

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