Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, November 30, 2015

'दूसरी कविता'
Another poem

जब मुझे मेरी पहली कविता अच्छी नहीं लगी
तो मैंने सोचा क्यों ना आज मैं एक दूसरी कविता लिखूं
और लिखूं कुछ बातें दूसरों की
पहली कविता, पहली होकर भी हारी हुई सी थी
और दूसरी, दूसरों की तरह परायी
एक दूरी का एहसास है इसमें
शब्दों और मनोभावों के मध्य
इन असंख्य वस्तुओं का अस्तित्व
जीवित अथवा मृत
जिनसे दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं
कभी कभार अपनी लगती हैं
दूसरी नहीं
वरना इस पुराने पीपल के नीचे
क्यों कर इतने सारे टूटे ईश्वर पड़े होते
और ये सुखी फूल मालायें
जिनसे कभी महकती थी वायु
ये पहले तो कितने पूज्य थे
और आज दूसरों की भांति
त्यज्य दिए गए हैं कि जैसे
इनसे कभी कोई नाता ही नहीं था
और फिर ये चारों ओर का वातावरण
जिससे अच्छा ये दूसरा जीवन
ही दीख पड़ता है
असीम शांति
अविरल सुख
अनवरत संतुष्टि
अतुलनीय दृष्टि
पहली कविता काश दूसरी होती!

-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava

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