सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।
क्षितिज से मिले है समंदर
पर जिसका पानी खारा-खारा
कि जैसे न नसीब हो
डूबते को तिनके का भी सहारा
और फिर आसमान में
टूटता, गिरता फिर उभरता एक तारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।
जिसे नहीं है रूह की समझ
वही करता रहता है मेरा तुम्हारा
मुझे इंसानियत में खुदा मिल गया
मैं भूल गया क्या होता है खसारा
निकल पड़ा हूँ लम्बे सफर की तलाश में
छोड़ छाड़ कर ग़मों का पिटारा
तैयार हूँ मिलने को आगे आने वाली हर एक शिकस्त से
पर सच जानों मैं आज तक नहीं हूँ हारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।
वक़्त को मुट्ठी में बांध लेने की भूल की थी कभी मैंने
और नहीं समझा था वक़्त का हसीं इशारा
कि ये ठहरा है, हम चलते जा रहे कहीं अँधेरे में
देखने को सुबह का उजला नज़ारा
नासमझ हैं, उजाला तो दिल में छुपा है
बाहर के उजाले से क्या कभी होता है गुज़ारा?
सोना पाकर मिट्टी खोकर, ऊपर उठकर जमीं से जुदा होकर
रह जायेगा इंसान गरीबअमीर, बेचारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।
आखिरी हुआ है जो पहला हुआ था
किसको मिला है सबकुछ, और सारा
माँ के तो आंचल में जन्नत है मिलती
आखिरी भी पहला-सा लगता है प्यारा
जो भी हुआ है, बस ठीक ही हुआ है
हँसते ही जाओ, रोक लो अश्कों की धारा
कर दो खुद को अर्पण उस एक ही दिशा में
यही सत्य तर्पण, यही सत्य संसारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।
मैं अकेला बंजारा।
क्षितिज से मिले है समंदर
पर जिसका पानी खारा-खारा
कि जैसे न नसीब हो
डूबते को तिनके का भी सहारा
और फिर आसमान में
टूटता, गिरता फिर उभरता एक तारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।
जिसे नहीं है रूह की समझ
वही करता रहता है मेरा तुम्हारा
मुझे इंसानियत में खुदा मिल गया
मैं भूल गया क्या होता है खसारा
निकल पड़ा हूँ लम्बे सफर की तलाश में
छोड़ छाड़ कर ग़मों का पिटारा
तैयार हूँ मिलने को आगे आने वाली हर एक शिकस्त से
पर सच जानों मैं आज तक नहीं हूँ हारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।
वक़्त को मुट्ठी में बांध लेने की भूल की थी कभी मैंने
और नहीं समझा था वक़्त का हसीं इशारा
कि ये ठहरा है, हम चलते जा रहे कहीं अँधेरे में
देखने को सुबह का उजला नज़ारा
नासमझ हैं, उजाला तो दिल में छुपा है
बाहर के उजाले से क्या कभी होता है गुज़ारा?
सोना पाकर मिट्टी खोकर, ऊपर उठकर जमीं से जुदा होकर
रह जायेगा इंसान गरीबअमीर, बेचारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।
आखिरी हुआ है जो पहला हुआ था
किसको मिला है सबकुछ, और सारा
माँ के तो आंचल में जन्नत है मिलती
आखिरी भी पहला-सा लगता है प्यारा
जो भी हुआ है, बस ठीक ही हुआ है
हँसते ही जाओ, रोक लो अश्कों की धारा
कर दो खुद को अर्पण उस एक ही दिशा में
यही सत्य तर्पण, यही सत्य संसारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava