Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, November 10, 2014

मिट्टी सी सोंधी यादें
Childhood Memories Of Relationships

इस बाज़ार की चहल पहल
और ये गुथी हुई सी भीड़
मेरे कानों में बजते संगीत से
सामंजस्य बिठा ही रहे थे
कि अचानक
मैं आवाक होकर
कहीं खो सा गया
शायद उन्हीं यादों में
जिनमें मेरा मन
आज भी रमा हुआ है
भीड़ से अलग
बाज़ार से कहीं दूर
जहाँ खिलौने मिलते हैं
और मिट्टी का गुल्लक भी
और जब गुल्लक में संजोकर
रखे गए सिक्कों की खनक
हृदय से मेल खाती है
तो सरगम शहद की भाँति
मीठा मीठा एहसास कराती है
इन यादों की छाया में
मेरे खिलौनों का एक छोटा सा
पिटारा है, बड़ा ही अनूठा
जिसमें सभी मुझे पाकर
खुश हो जाना चाहते हैं
और मैं उन्हें सजीव होता देख
नम आँखें लिए, हँस पड़ता हूँ


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© Snehil Srivastava

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