Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, November 25, 2014

रुक भी जा हे तुच्छ मानव!
Earth is dying, so the humanity

इंगित करती हैं भावनायें उन रहस्यों की बानगी
जिनमें छिपा है सार सत्य और पर्दा कभी उठता नहीं
स्वीकारता है तुच्छ मानव अस्तित्व की अंधी दौड़ को
थक हारकर रुकता है फिर, न पाता है अपने ठौर को
बेड़ियों में जकड़कर स्वयं को पाता है वो रोता बिलखता
सत्य क्या है जाने क्या वो, जो असत्य को है सत्य समझता
चलता ही जाता लक्ष्यहीन मानव भय को साथी मानकर
होती कहाँ उसकी विजय है बिन सत्य को पहचानकर

अब खड़ा है वो ऊँचे पर्वतों पर जो अनगिनत रहस्यों से हैं बने
कुछ जड़ हैं तो कुछ खोखलें, जिनमें वो अपनी ही आवाज़ें सुने
धिक्कारती हैं वो उसे हर पाप क्षण को साक्ष्य मानकर
टस से मस होता नहीं वो इस अकाट्य सत्य को जानकर
उसका चरित्र तो रक्तिम ही था ये पर्वतों ने भी माना है
उसके सिवा उसका ही सत्य बस बाकियों ने जाना है
रुक भी जा हे तुच्छ मानव! विष वमन अब छोड़ दे
नहीं करूँगा क्षमा तुझे अब, यदि रोता रहा मेरा हृदय

Picture credit: mynatureonline.blogspot.com

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© Snehil Srivastava

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