Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, May 12, 2015

अकिंचित मन
Disappeared

अकिंचित मन!
तेरा ये टिमटिमाता क्रंदन
नभ् के वो तारे हैं
जिन्हें पा सकना निर्मूल है
अश्रु सिंचित होकर भी
हृदय, मरुस्थल रुप धरने को उत्सुक है
कहीं कहीं से
या केवल वहीँ से
जलावतरण होना अवश्यम्भावी है
वैतर्णी के पार होकर
मार्ग पर ही
त्यज्य कर दिया गया सभी कुछ
इसी में जन्म का कारण
परिलक्षित होता दिखाई देगा
किन्तु वृहद् संसार
और इसका विस्तृत पटल
दसों दिशाओं को साक्षी मानकर
मुक्ति मिलन को आतुर है
क्या यही सार है
क्या यही त्रुटि विचार है
उत्तर की इच्छा
प्रश्नों की परीक्षा
अनंत साधन, शुन्य की भांति
यदा कदा निष्कलंक हो जाते हैं
ढलता हुआ क्रंदन
ध्रुव हो चला है
स्वतेज। स्वविकसित। स्वाभिमानी।
शीतलता चरणों को जल से
सुशोभित कर देने को
अग्रसर है। कि जैसे-
चन्द्रमा मद्धम होकर
पृथ्वी पर उतर आया हो।


Picture credit: www.allgirlsallowed.org
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© Snehil Srivastava

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