Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, September 7, 2015

टूटी कश्तियाँ
The Broken Boat

एक तूफ़ान हुआ करता था यादों के गहरे समन्दर में पर टूटी कश्तियाँ किनारे तक पहुँच जाया करती थीं थपेड़े लगा करते थे हर पल, हर छिन वो उनसे भी गहरी, गहरी चोटें खाया करती थीं पर टूटी कश्तियाँ किनारे तक पहुँच जाया करती थीं आसमान से गिरती बिजलियाँ उन्हें दर्द दिया करती थीं वो कश्तियों के टूटे शरीरों को और तपाया करती थीं पर टूटी कश्तियाँ किनारे तक पहुँच जाया करती थीं एक रोज़ गहरा समन्दर कश्तियों से बोला- तुम हार जाओगी वो उसकी इन्हीं बातों पर बस मुस्कुराया करती थीं पर टूटी कश्तियाँ किनारे तक पहुँच जाया करती थीं उनका 'वक़्त' साथी था, हर वक़्त साथी था वो उसकी खुली बाहों में सो जाया करती थीं पर टूटी कश्तियाँ किनारे तक पहुँच जाया करती थीं जज़्बा था उनमें बढ़ने का, वो रुका नहीं करती थीं झुलसे हुए पतवारों को बेख़ौफ़ चलाया करती थीं पर टूटी कश्तियाँ किनारे तक पहुँच जाया करती थीं हाँ दर्द था, रिसता खून उनका सर्द था वो उन्हें देख देखकर जाने कहाँ खो जाया करती थीं पर टूटी कश्तियाँ किनारे तक पहुँच जाया करती थीं हर चोट, हर दर्द को उन्हें सहना ही था इसीलिए वो अपना लक्ष्य पाया करती थीं और टूटी कश्तियाँ किनारे तक पहुँच जाया करती थीं


-Snehil Srivastava
 Picture credit: www.miriadna.com
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© Snehil Srivastava

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