क्या भूलूं क्या याद करूँ
बस खुद से ही फरियाद करूँ
नेत्रित्व की चाह में बढ़कर
आगे मैंने ये सोचा था
रखीं थीं अपनी आँखें बंद
यही आँखों का धोखा था
अभी चलना है आगे मुझको
अभी जीना है तप के मुझको
बस भूलूंगा जो याद है
यही मन का अवसाद है
मीठीं बांतें भूल गयीं
वो शीतल रातें भूल गयी
तब शीतलता मेरे मन में थी
मन क्या ! सारे जीवन में थी
अभी तो जागा सोकर मै
मुस्काया हूँ रो-रोकर मै...!!
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