आओ चलें उस देश को
जहाँ है सब कुछ अपने मन का
आओ धरें उस वेश को
जो ढांक दे दोष सारा तन का
वो देश कहाँ है
वो वेश कहाँ है
देश हमारे मन में है
वेश छिपा जीवन में है
जब मन सजल हो जायेगा
जीवन निर्मल हो जायेगा
ये मेरा है विश्वास
मन तो है सिर्फ अंतर्मन के पास
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