Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, October 15, 2011

"...म्हारे को म्हारे सासुरे भेज दो..."


मुझको मेरे ससुराल भेज दो
वहां ये मेरा हाल भेज दो
माँ का रोना अब देखा नहीं जाता
पिता का खिलौना अब टेका नहीं जाता
मुझे अब उन दूजे फूलों की सेज दो
मुझको मेरे ससुराल भेज दो


भैया से लड़ाई अब याद आती है
गुड्डे गुड़ियों की सगाई अब याद आती है
देखो भैया मुझे फिर रुलाता है
फिर प्यार से छुटकी बुलाता है
इन सारी बातों को कहीं सहेज दो
मुझको मेरे ससुराल भेज दो


जब मैं मेरे ससुराल जाऊँगी
इन बातों को ना भूल पाऊँगी
सबकी मुझको याद आएगी
सोने पर भी नींद ना आएगी
माँ...! तुम मुझे अपना सा तेज दो
मुझको मेरे ससुराल भेज दो...

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