एक अजीब सी पहेली है
कभी साथी कभी सहेली है
दुत्कारने पर भी समझ ना पायी
हर वक़्त अपनों की फ़िक्र उसे उनके पास ले आयी
जनम पर ही अर्थी उसकी सजायी
पर वाह री किस्मत, वो फिर भी जी आयी
माँ ना होती तो उसका क्या होता
फिर आज उसका धुंधला अस्तित्व भी ना होता
बचपन में ही बचपन खो दिया उसने
किताबों के साथ चूल्हा चौका संभाला उसने
अरमानों के पूरे होने का करती रही वो इंतज़ार
हाँ ये वही है, जिसे त्याग के बदले भी मिल ना पाया प्यार
सिवाए रुसवाइयों के उसे कुछ ना मिला
बिना कठिनाइयों के कोई पथ भी ना मिला
फिर भी ठोकरों से वो घबरायी नहीं
अपनी सफलताओं से वो खुशियां लायी नयी
जब कामयाबी आयी उसके पास
मन में उमंग और खुशियों की आस
उस वक़्त डोली में बिठा, कर दिया उसको विदा
और ले लिया उससे वचन, के करेगी अबसे स्वयं को न्योंछावर सदा
उस नए घर में जाकर, अपना लिया उसने सभी को
पर कह ना पायी अपनी पीड़ा किसीको
पीड़ा जो उसने दी जिसे ज़िन्दगी भर का साथ निभाना था
जिसका काम उसे और उसके सपनों को ठुकराना था
फिर माँ बनने की ख़ुशी उसके मुख पर छायी
और बेटी को जन्म देकर खुशियों के लहर थी आयी
फिर दोहरा रहा था ज़माना अपने उसूलों को
खत्म कर देना चाहता था उस नवजात बेटी को
इस बार एक माँ रुक ना पायी
हो खड़ी डटकर, उसने ललकार थी लगायी
कि जिस बेटी को मारना चाहते हो
है वो एक सुनेहरा भविष्य, क्या इतना तुम जानते हो
वो बेटी जो पढ़ लिखकर एक अच्छी संतान साबित होगी
और अपनी सफलताओं से जग को रोशन करेगी
फिर अगले कदम पर किसी का हाथ थामकर उसकी जीवन संगिनी बनेगी
और इस पृथ्वी के जीवन चक्रव्यूह को पुनः रचेगी
आज मैंने आवाज़ उठाई है, कल सबको उठानी होगी
आज नहीं रोक तो आगे भी ऐसी ही मनमानी होगी
तोड़ दें आज इन कुरीतियों को
जो खिलने नहीं दे रही कोमल कलियों को
वो बेटियां जो सदा समर्पित रहती हैं अपने कर्म, अपने कर्तव्य के लिए
क्या दुनियाँ में थोड़ा सा भी प्यार नहीं हैं उनके लिए
वो प्यार जिसे वो खुद दूसरों पर अर्पित कर देती है
अपना सारा जीवन उन्हीं को समर्पित कर देती है
आज हमें मिलकर कसम लेनी होगी
के अबसे हर बेटी के चेहरे पर मुस्कान रहेगी
मुस्कान जो उसे सम्मान और प्यार देगा
तभी दूर सकेगा जग से इस कुरीति का अँधेरा
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Neha Bakshi
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