Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, September 27, 2014

झूठा शायर Poet, a liar.


'Barish' only for you, you know why?

किसी को तो
कुछ भूल ही गया
अपनी कही हर एक बात
मुझसे किया हर एक वादा
क्या समझता है वो खुद को
बड़ा आया
झूठा शायर

बातें ही हैं उसके पास
और कुछ भी नहीं
ना प्यार, ना दुलार
और अब तो 'ना ही मैं'
मुझे इंकार नहीं
उसकी ज़ेहनियत से
और उसकी हर बात में छिपी
झूठी मोहब्बत से
बड़ा जालसाज़ है वो
पर ये मेरा दिल-
क्या करूँ मैं इसका
समझा समझा के
हार ही गयी हूँ.
इंतज़ार ही करता रहता है,
उसके बस कुछ कह देने का
और हो सके तो मेरा होने का
पर,
क्या समझता है वो खुद को
बड़ा आया
झूठा शायर

मैं ठहरी मासूम दिल की
मुझमें नहीं है
इतनी नफरत उसके लिए
मैं तो बस
उसकी हंसी में
अपना अक्स देखती हूँ
उसे..हाँ दो पल तो सोचती हूँ
और वो
हर बार भूल जाता है मुझे
ठीक है मत रखना याद
मैं भी नहीं रखूंगी याद उसे
देख लेना
पर क्यूँ कर रहा है वो ऐसा
क्या समझता है वो खुद को
बड़ा आया
झूठा शायर

Picture credit: www.ahmadiyyatimes.blogspot.in

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© Snehil Srivastava

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