Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Wednesday, December 17, 2014

पेशावर की लाल धरती
Peshawar- The Massacre


छद्म था वो आवरण
जिसपर चढ़ा था स्वर्ण रंग
कीचड़ सा था उनका हृदय
मिथ्या रंगों का क्या करे
नयन हुए थे चकाचौंध
बढ़ चला उनको वो रौंद
गतिहीन थी उसकी ये चाल
धरती हुई थी रक्त लाल
सूना था आँचल सूखे थे आंसू
सब छिन गया किसको क्या बांटू
दुनिया भी चीखी ईश्वर भी रोया
किसने क्या पाया किसने क्या खोया
अब अति हुई और बहुत हुई
अब खुल चुकी है सारी कलई
घट भर चुका है पाप का
अमानवीयता की हर बात का
क्रूरता अपने चरम पर है
क्या बात सिर्फ धरम पर है?

Picture credit: http://www.vocativ.com

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© Snehil Srivastava

1 comment:

  1. क्रूरता अपने चरम पर है, क्या बात सिर्फ धरम पर है..

    वाह....... इस एक line ने वो सब बोल दिया जो सदियों से चला आ रहा एक घिनौना सच है और जो मानव के अन्दर अमानव को उजागर और शर्मसार कर रहा है..

    बहुत खूब लिखा है..बहुत ही उत्तम...आपको बहुत बहुत साधुवाद..

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