Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, December 31, 2016

'सारी दुनिया की भीड़ में मैं अकेला बंजारा'
Lonely Traveller

सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।
क्षितिज से मिले है समंदर
पर जिसका पानी खारा-खारा
कि जैसे न नसीब हो
डूबते को तिनके का भी सहारा
और फिर आसमान में
टूटता, गिरता फिर उभरता एक तारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।

जिसे नहीं है रूह की समझ
वही करता रहता है मेरा तुम्हारा
मुझे इंसानियत में खुदा मिल गया
मैं भूल गया क्या होता है खसारा
निकल पड़ा हूँ लम्बे सफर की तलाश में
छोड़ छाड़ कर ग़मों का पिटारा
तैयार हूँ मिलने को आगे आने वाली हर एक शिकस्त से
पर सच जानों मैं आज तक नहीं हूँ हारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।

वक़्त को मुट्ठी में बांध लेने की भूल की थी कभी मैंने
और नहीं समझा था वक़्त का हसीं इशारा
कि ये ठहरा है, हम चलते जा रहे कहीं अँधेरे में
देखने को सुबह का उजला नज़ारा
नासमझ हैं, उजाला तो दिल में छुपा है
बाहर के उजाले से क्या कभी होता है गुज़ारा?
सोना पाकर मिट्टी खोकर, ऊपर उठकर जमीं से जुदा होकर
रह जायेगा इंसान गरीबअमीर, बेचारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।

आखिरी हुआ है जो पहला हुआ था
किसको मिला है सबकुछ, और सारा
माँ के तो आंचल में जन्नत है मिलती
आखिरी भी पहला-सा लगता है प्यारा
जो भी हुआ है, बस ठीक ही हुआ है
हँसते ही जाओ, रोक लो अश्कों की धारा
कर दो खुद को अर्पण उस एक ही दिशा में
यही सत्य तर्पण, यही सत्य संसारा
सारी दुनिया की भीड़ में
मैं अकेला बंजारा।


-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava

'आज फिर तुम वही, आज मैं भी वही'
Its a new Dawn

आज फिर सुबह हुई
आज फिर तुम वही
आज मैं भी वही
लेकिन....
बातें हैं कुछ...अनकही
तुमसे होंगी अब नयी खुशियां
होंगी मेरी आंखें नम कभी कभी
तुम्ही लाओगी मुझमें ठहराव
जैसे ये नदी कभी बही ही नहीं
या फिर एक अनवरत पल
जो तुमने अबतक पाया नहीं
तुम्हारा मुस्कुराना, प्यार से नाराज़ हो जाना
शायद इसी को कहते हैं ज़िन्दगी।
आज फिर सुबह हुई
आज फिर तुम वही
आज मैं भी वही
लेकिन....


-Snehil Srivastava
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'तू क्या सोचता है हमेशा रहेगा?'
Till the time comes...

जो मेहनत करी, तेरा पेशा रहेगा
ना रेशम सही, तेरा रेशा रहेगा
अभी कर ले पूरे, सभी काम अपने
तू क्या सोचता है हमेशा रहेगा?

सच्चा तू बन जा, कच्चा सा बनकर
अच्छा तू बन जा, अच्छा सा बनकर
बड़े होने में अब कोई अच्छाई नहीं है
तू छोटा ही बन जा बच्चा सा बनकर
क्या चाहा तूने, क्या हुआ साथ तेरे
छोड़कर चले गए, सारे अपने तेरे
तू ही रुका था इस लम्बे सफर में
रात बीती लम्बी हुए फिर सवेरे
अब इतना सहा है, फिर कितना सहेगा?
अँधेरा हुआ है, सवेरा भी होगा

तू चलना शुरू कर पुराना भुलाकर
तू क्यों सोचता है सवेरा ना होगा?
अभी कर ले पूरे, सभी काम अपने
तू क्या सोचता है हमेशा रहेगा?

                  -Inspired by a poem (Sri Ashok Chakradhar)

-Snehil Srivastava
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'तुमसे मिलकर'
Lost Journey, Past Journey

जुदा हूँ मैं अब इस जहाँ के रंजोगम से
यहाँ लोग हँसते हैं, रोते है, चले जाते हैं।

मेरा सामना बस एक बार ज़िन्दगी से हुआ है
सच जानो, जिंदगी से मिलने वाले ही जिंदगी को जान पाते हैं।

तुमसे मिलकर मैंने हंसना सीखा, रोना भूल ही गया
अब गम नहीं ग़र तेरे मेरे रास्ते बदल जाते हैं।

मंज़िल एक ही है ये तू जानता है, पता मुझे भी है
बस बीते सफर के कुछ पल याद रह जाते हैं।


-Snehil Srivastava
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Monday, November 7, 2016

स्थिर गति
Stream of life

कितनी रफ़्तार है ज़िन्दगी में
किन्तु समय स्थिर, मौन जैसे अनंत व्योम
और ये एहसास कितना सरल है
जैसे यथार्थ और यथार्थ का विलोम
उन दूर चमकते तारों से पूछा
इन घटाओं से, बहती हवाओं से, इन बहारों से पूछा
कौन है तुम्हारा खेवैया?
क्या तुम्हारी भी होती है ज़िन्दगी?
तारों ने और भी चमककर
घटाओं ने जोरों से घुमड़कर
हवाओं ने बहकर सरसारकर
बहारों ने हमेशा की तरह मुस्कुराकर
कहा-
ये वो है जिसका कोई रूप नहीं
बिन जिसके हमारा, शून्य जितना भी स्वरुप नहीं
वही प्रथम है, वही अंतिम भी है, वही सर्वाधार है
जो अविस्मरणीय भूत है, जो अंत रुपी भविष्य है
जिसके कारण ही वर्तमान साकार है
यही तो ज़िन्दगी है, यही इसकी रफ़्तार है
जिसके बिना जिंदगी एक मझधार है
इस भव सागर का खेवैया भी वही है
वही पतवार है, नैया भी वही है
और हम केवल कठपुतलियां
तो क्या कोई और; गतिमान है,
अतिरिक्त सर्वस्व, स्थिर है ज्ञान है?

-Snehil Srivastava
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Sunday, November 6, 2016

हर रात के बाद...
When the night passes

बहती भीनी ठण्डी हवा,
जब रात के तारों संग
सरकते हुए मेरे तकिये के नीचे
आती है, तो यूँ लगता है
कि प्रकृति की शुचिता
मानवीकृत होकर
मुझे मेरे अधूरे सपनों से
मिला देने चाहती है।
सुबह का ये नीला आकाश,
कलरव करते पंछी,
झूमते उमड़ते वृक्ष; मुझे अपने रंगों में
भिगो देने को आतुर हैं
कि मेरी अस्मिता
मुझमें आत्मसात होकर
मुझे मेरे खोये अस्तित्व से
रूबरू कर देना चाहती है।

-Snehil Srivastava
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आज मुझे खुदा मिला
I met Him today

आज मुझे खुदा मिला,
रंजोग़म में बैठा - गुमसुम सा खुदा
उसकी आँखों का पानी
उसके कांपते हाथ
उसका उतरा चेहरा
उसकी थरथराती आवाज़,
जाने थी किस वजह?
पर आज मुझे खुदा मिला।
मेरे सवालों पर,
उसने गहरी ख़ामोशी इख्तियार कर ली।
मेरे कुरेदने पर बस-
उसकी आँखों का पानी,
गालों के रास्ते ढुलककर
सर्द होने लगा।
और आज मुझे खुदा मिला।
उसका यूँ ग़मगीन होना
उसके खुदा होने पर
कई सवाल खड़े करता है।
कि क्या वो वाकई खुदा है?
क्या वो इंसानियत से इतर हुआ है?
या फिर उसे 'कुछ तो' एहसास हुआ है।
क्या? वो अपने खुदा से क्यों न पूछ ले?
शायद वही यह कह सके-
"आज मुझे खुदा मिला।"

-Snehil Srivastava
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पहला प्रश्न, अंतिम उत्तर
Beginning of an end!

इस तरह या उस तरह
न जाने फिर किस तरह?
तारा टूट गया,
हर अपना रूठ गया।
मनाया मैंने,
उस टूटे तारे को
सुबकते-बिखरते,
उस प्यारे को
पर वो
सपना सा, तारा बनकर टूट गया।
क्या सचमुच वो एक तारा था?
एकलौता जीवन जो हारा था,
अपनी मध्यम रौशनी को भूले
क्या ऐसा अस्तित्व वो सारा था।
पर वो तारा था,
रूठ गया, टूट गया।
सारे अपने मुझमें मिलकर
मुझसा बनना क्यों चाहें हैं?
क्या मैं भी खुद से रूठा हूँ
फिर वो तारे मुझको क्यों मनाये हैं?
पहला प्रश्न, अंतिम उत्तर-
इस तरह या उस तरह
न जाने फिर किस तरह!

-Snehil Srivastava
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Tuesday, August 30, 2016

वो शाम
That evening which never happened!

आज वो शाम फिर आई है
उदासी संगिनी है जिसकी
और जिसके मायूस चेहरे पर
हंसी, बीती हुई सी बात लगती है
हाँ ये वही शाम है जिसका तन
अपने होने के एहसास से
भरमा जाता है, तो कभी शरमा भी जाता है
काँपते होठों पर इस शाम ने
अनकहे एहसासों को जज़्ब कर रखा है
जो आँखों के मोती बनकर बस
ढुलके जा रहे हैं। नरम उँगलियों पर
इसी शाम ने उस छुअन को महसूस किया था।
और तब ये शाम
जाने क्यों हंस पड़ी थी।
आज वो शाम फिर आई है।
आज वो शाम...फिर न जाने के लिए।
-Snehil Srivastava
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'कई दफ़ा...'
Human again!

उस ताख पर लिपटी कालिख
मन का उजाला लिए हंसती थी
मैंने महलों को तो जाने कितनी दफ़ा
रोते हुए देखा है।
खुदा उन घरों में बसता है,
जहाँ मोहब्बत रहती है।
मैंने सर परस्तों को जाने कितनी दफ़ा
नफरत करते हुए देखा है।
बेजा हुई हर वो धड़कन
जिसने इंसानियत से मुंह है मोड़ा
मैंने फरिश्तों को जाने कितनी दफ़ा
क़त्ल करते हुए देखा है।
रूह को सुकून मिल जाता है
बस एक बार के इंसान होने से
मैंने जानवरों के दिल में
इंसान बनते हुए देखा है।

-Snehil Srivastava
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Saturday, June 11, 2016

Review: 'Stranger Trilogy' by Novoneel Chakraborty


We all are special in some way or the other. And sometimes we don't believe in ourselves, what we are capable of doing and make things happen the way they should? Since our imagination is limitless and it can reach mountains and above that too in mere one second then think if we do what we imagine, how fantastic and unknown but worth places we can reach in life on our own. For that we must understand what our worth is and why are we here in this beautiful world? This simple but vast question is so important in life.

Stranger trilogy is not a love story, I won't say it a suspense thriller either. It nowhere binds you to the story that you would have an urge to know who the stranger is, but yes, one would surely want to understand why the Stranger?

In life, we meet lots of people. A few people find places in your hearts and that too for no reason. And then they stay in our hearts forever. Stranger is that one person, whom you would want in your life to stay forever; you decide, do you really want this or the reasons that he is in your life and made you understand what your worth is?
The story lingers around two characters, Rivanah Bannerjee and the Stranger. Stranger has been the reason, all bad happening in Rivanah's life but at the same time he calms her down to the core of her heart. She wants to get rid of the Stranger and at the same time she cannot restrain herself not to do so.
Rivanah is a genuine character and so the Stranger. Other important characters of the story are, Ekansh- the dilemma in life, Danny- the false truth of life, Tista- the guilt in life, Hiya- a never ending past of life, Nivan- what life is all about everything else and a few more. These all are real life characters whom we meet in our day to day life. We don't know if it is right or wrong but we follow it. And then we fell for a false truth avoiding our guilt as if it doesn't exist. We meet our past in between that hinders our present every now and then. And when we sleep, we understand that life is not into these things but life is to know what it really is. And after all, in dreams we realize something.

The worth of an individual. The worth of the smile appearing on your lips for no Godly or silly reason. The worth when your eyes dwell up in ecstasy. The worth. The reality. The realization.
I love reading Novoneel. He listens to his readers. The way he tells a story feels like you are into it. And you are one of his characters. The stranger trilogy is that one story, in which you will find yourself. AND You will know, YOUR WORTH.



-Snehil Srivastava
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Tuesday, May 3, 2016

मन के घरोंदे
Mann ke Gharonde


मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
जिनमें सपनों की सीपियाँ, कुछ उजले मोती भी सजाये
नंगे पैरों पर खारेपन की चादरें,
कि जैसे सागर संग नीर अद्भुत गीत गाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
मेरा ठहराव, मेरा मन और कुछ सूना सा सूनापन
तुम्हारी आहट भर से महकती ही चली जाये
कि जैसे अनंत रिक्तता क्षणिक भ्रान्ति की भांति
सम्पूर्ण अस्तित्व में समाती जाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
सहज सरल साहिल, लहरों की बांट है जोहता
स्वयं रहे मौन किसी से कुछ भी न कहता
लहरों का आकार साहिल सा रूप धरता जाये
प्रत्येक दिशाएं नित नवीन उत्सव मनाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
क्या छिपा भविष्य में, नियति कैसे समझ पाये
बंद मुट्ठी की रेत बस यूँ ही फिसलती चली जाये
यदि कोई इसे थाम ले तो और बात हो
वरना होनी को आखिर कौन टाल पाये
काश हम, यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाएं


-Snehil Srivastava
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दर्पण का जीवन
The imaginary world of a mirror


वो एक विहंगम दृश्य था
मनुष्य, दर्पण सदृश्य था
वो सत्य था, घनघोर बहता रक्त था
उसका प्रतिरूप मौन था
आखिर! वो आखिर कौन था?
उसमें मर्म था, जाने ये कैसा कर्म था?
उनकी दिशाएं एक थीं
किन्तु एक-दूसरे के विपरीत थीं।
दर्पण वो अपने दर्प में
ना जाने किस सन्दर्भ में
खुद से अलग अब हो गया
अपनी मनुष्यता खो गया
निर्जीव है, स्वयंभू होकर भी
जीवित भी होगा, लगता नहीं
दर्पण का जीवन, पूर्ण है
मनुष्यत्व जैसा अपूर्ण है।


-Snehil Srivastava
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जिंदगी के मायने
Meaningful Life


जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने
बुज़ुर्गियत झलकती है कभी
तो मौत का दीदार भी हुआ करता है
रह रहकर कह कहकर
लोग लगते हैं जाने क्या-क्या बताने

जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने

तमाम खोयी हसरतें, मिल जाने को तरसें
कहीं धूप, कहीं छाँव तो कहीं आँखें है बरसें
कसक सी उठे सीने में, तो प्यार हुआ करता है
यहीं इसी जमीं पर रंजोग़म पाक हुआ करता है
पर इसे कोई तो समझे, इसे कोई तो जाने
टूटते बिखरते हैं, हर एक बुने सपने सुहाने

जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने

कोई करतब दिखाता है, कोई खेल ही बन जाता है
कोई हँसता है, रोता है, कोई रोते हुए को हंसाता है
कभी तो महलों में भी अँधेरा हुआ करता है
हर गहरी रात के बाद सवेरा हुआ करता है
बंद आँखों से कोई इसे कैसे पहचाने
लो आज फिर तुम मुझे लगे समझाने

जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने

आखिरी होगी वो दास्ताँ, जिसमें दर्द नहीं होगा
सहमे काँपते होंठो का खून सर्द नहीं होगा
इतनी भी जल्दी कहाँ वक़्त हुआ करता है
हंसना ही जीने का नाम हुआ करता है
चलो गाएं गीत नए, लिखें नए तराने
कोई माने तो माने, या फिर ना ही माने

जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने


-Snehil Srivastava
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The You in me is child-like


The You in me is child-like.
I have patience. You are impatient who wants to do everything in a day.
I have anger that binds me to be happy. You are limitless happiness, I wish for you and pray.

I am bad in expressing the inside me. You have expressed every bit of that broken but beautiful and real self out of the darkest way.
I do mistakes and lose. You are the only one who always stay.

I find myself helpless at times. You show me strength, hope and that pretty untouched ray.
When I could not sleep. You become my dreams and shape to the beauty that useless clay.

Sometimes I feel absorbent to the pain and tears. Smile. You just say.
I don't understand myself. You have known me day, everyday.
The You in me is child-like.


-Snehil Srivastava
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Thursday, February 25, 2016

Vaamika (Short Film): Manisha Malhotra


A man wakes up late at night and finds his wife missing in mysterious circumstances. He hears her scream and begins to seek for her, crossing weird happenings and voices. The series of events repeat themselves in hideous ways. A dream, a fact or a déjà vu.

Credit: https://www.youtube.com/channel/UCjeADfiW5PZAoN2DopQAu_Q


-Snehil Srivastava
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Tuesday, February 9, 2016

सुलझन?
Resolved?

क्या लिख दूँ क्या ना लिख दूँ
मन का सारा सूनापन लिख दूँ।
सरल सलोने भावों को लिख दूँ
कठिन रिश्तों का रूखापन लिख दूँ।
प्रेम सरस की ढेरों बातें
ईर्ष्या द्वेष का बंधन लिख दूँ।
बहती नदिया और उसका मीठा जल
सागर का खारापन लिख दूँ।
तिमिर सरीखी लिख दूँ शीतलता
सूरज की घोर अगन लिख दूँ।
मौन हुई मानवता लिख दूँ
संवेदनाओं का दर्पण लिख दूँ।
थमे हुए इन हाथों को लिख दूँ
खोया चंचल बचपन लिख दूँ।
जीवन लिख दूँ या फिर मृत्यु
या इनमें व्याप्त अधूरापन लिख दूँ।

-Snehil Srivastava
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Monday, February 8, 2016

अपने से पराये
Known-Unknown

गहरी सर्द रातों में
यादों की सिलवटें
और मुंदी आँखों का जागना
कुछ बेमानी सा लगता है
तमाम आवाजों का
अपने होने की वजहें
सन्नाटे के घर में तलाश करना
कुछ रूहानी सा लगता है।

पर क्या करें...?
ये रातें, ये यादें
उनपर सिलवटें, ये मुंदी आँखें
और सन्नाटे के बीच, खोयी आवाज़ें
अब मेरी नहीं।
इन पर असली हक़ तो
किसी अपने से पराये का है
अब तो बस एक गहरी नींद का इंतज़ार है।


-Snehil Srivastava
Picture credit: An unknown 'Photographer'
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Monday, January 18, 2016

बारिशें
Barishein

ये जो बारिशें हैं, वक़्त देखकर आती हैं
किसी के दर्द में, किसी की ख़ुशी में

ये जो बारिशें हैं, पुरजोर भिगाती हैं
किसी को ग़मों से, किसी को हंसी से

ये जो बारिशें हैं, बड़ा शोर मचाती हैं
किसी भीड़ के अकेलेपन में, किसी मयूर के झूमते मन में

ये जो बारिशें हैं, कई गीत सुनाती हैं
किसी और पर बरसती हैं, किसी और को भिगो जाती हैं

ये जो बारिशें हैं, हाँ यही बारिशें


-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava