Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, January 18, 2010

मेरे भाई स्वप्निल के कुछ शब्द...


जब भी देखता हूँ ख़ुशी , ढूंढता हूँ उसमें गम
आशा, निराशा और प्रत्याशा हैं मेरे साथी हर दम

जब भी बरसात  आती है
हर दिल में खुशियाँ छाती हैं
तुम क्या जानो उस बरसात के बारे में
उसे बस मेरी ही तो पीड़ा बुलाती है


क्या जानूं कैसे ये ख्याल आया
ये तो दर्द की ही एक टीस थी जिसने मुझे फिर सताया
क्या करता इसलिए मैंने फिर से कलम को उठाया
और दर्द को इन कोरें पन्नों पर लिख लिख कर भुलाया


सुख दुःख तो हैं एक ही सिक्के के दो पहलु
कोई सहारा दे अगर मै भी सारे गम सह लूँ
मिलते तो हजारों हैं मुझे रोज़ यहाँ
पर कोई मिला नहीं जिससे अपनी बातें कह लूँ


गम के सागर में हिलोरें ले रही है मेरी नाव
हर बार किनारे पर आकर डूब रही है मेरी नाव
किस हाथ से पकडूँ मै इसकी पतवार
बस बिन मंजिल चली जा रही है मेरी नाव

2 comments:

  1. Bahut achi poem hai..........ab mujhe words nahi samajh me aa rahe lekin bahut achhi lagi mujhe, bahut zyada

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